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कबीर दास भारतीय संत, कवि और समाज सुधारक थे

जयंती विशेष

कबीर दास कल, आज और कल 

झारखंड / सुरेन्द्र मैत्रेय

कबीर दास भारतीय संत, कवि और समाज सुधारक थे जिनका जन्म 1398 में हुआ था। उनका जीवनकाल 1518 तक माना जाता है। उनका जन्म स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश के निकट लहरतारा में माना जाता है। कबीर दास का वास्तविक जन्म स्थान और उनके माता-पिता के बारे में विभिन्न मत हैं, लेकिन सामान्य रूप से यह माना जाता है कि वे नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति द्वारा पाले गए थे।

प्रारंभिक जीवन

कबीर दास का पालन-पोषण एक मुस्लिम जुलाहा परिवार में हुआ था। उनका जीवन प्रारंभ से ही कठिनाइयों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने अपने साधारण जीवन को जीते हुए उच्च आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त किए।

शिक्षा और आध्यात्मिकता

कबीर का धार्मिक दृष्टिकोण अद्वितीय था। वे न तो हिंदू धर्म के पूर्ण अनुयायी थे, न ही इस्लाम के। उन्होंने दोनों धर्मों की आलोचना की और एक सच्चे, सरल और धार्मिक जीवन की बात की।

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काव्य और शिक्षाएँ

कबीर दास के दोहे, साखियाँ और पद भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनके दोहों में जीवन की सच्चाइयाँ, ईश्वर की प्राप्ति के मार्ग, समाज में व्याप्त बुराइयों की आलोचना और मानवता की सेवा का संदेश मिलता है। उनकी कुछ प्रमुख शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:

एक ही ईश्वर है, और उसकी आराधना सभी को करनी चाहिए।

जाति-पाति, धर्म-सम्प्रदाय के भेदभाव से ऊपर उठना चाहिए।

सच्ची भक्ति और प्रेम से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।

सांसारिक मोह-माया से दूर रहना चाहिए।

प्रमुख रचनाएँ

कबीर के दोहे और उनके भजन विभिन्न संग्रहों में मिलते हैं। उनके काव्य को कबीर ग्रंथावली, बीजक, और गुरु ग्रंथ साहिब में भी संकलित किया गया है।

मृत्यु और विरासत

कबीर दास की मृत्यु मगहर, उत्तर प्रदेश में 1518 में हुई। उनके अनुयायी दोनों हिंदू और मुस्लिम हैं और उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी शिक्षाएँ और काव्य लोगों को प्रेरित करते हैं। उनके नाम पर विभिन्न संस्थान और समाज सुधार आंदोलनों का संचालन होता है।

कबीर दास की शिक्षा और साहित्य आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने वे उनके समय में थे। उनकी रचनाएँ आज भी लोगों को मानवता, प्रेम और ईश्वर की भक्ति की ओर प्रेरित करती हैं।

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