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झारखंड का विस्थापन एवं पुनर्वास नीति क्या है

झारखंड का विस्थापन एवं पुनर्वास नीति

झारखंड/ सुरेन्द्र मैत्रेय

झारखंड का विस्थापन और पुनर्वास नीति का मुख्य उद्देश्य उन लोगों के अधिकारों की रक्षा करना है जो विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित होते हैं। यह नीति उन्हें समुचित पुनर्वास और मुआवजे की व्यवस्था करने के लिए बनाई गई है। झारखंड में खनन, औद्योगिक विकास और अन्य परियोजनाओं के कारण बड़े पैमाने पर विस्थापन होता है, इसलिए यह नीति महत्वपूर्ण है।

झारखंड की विस्थापन और पुनर्वास नीति की मुख्य विशेषताएँ:

  1. मुआवजा और पुनर्वास पैकेज:
    • भूमि का मुआवजा: विस्थापित लोगों को भूमि का उचित मुआवजा दिया जाता है। मुआवजा बाजार मूल्य के आधार पर तय किया जाता है।
    • पुनर्वास स्थल: विस्थापित लोगों को पुनर्वास स्थल पर भूमि और मकान मुहैया कराए जाते हैं।
    • आर्थिक सहायता: विस्थापित परिवारों को आर्थिक सहायता दी जाती है, जिसमें नकद मुआवजा और अन्य वित्तीय पैकेज शामिल हैं।
  2. सामाजिक और आर्थिक पुनर्वास:
    • रोजगार के अवसर: विस्थापित लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किए जाते हैं। इसमें नौकरी और स्वरोजगार के विकल्प शामिल हैं।
    • शिक्षा और स्वास्थ्य: पुनर्वास क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है।
    • सामाजिक संरचना: सामाजिक और सांस्कृतिक संरचनाओं की स्थापना, जैसे कि सामुदायिक केंद्र, मंदिर, आदि।
  3. पर्यावरण संरक्षण:
    • पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन: परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन किया जाता है और पर्यावरणीय क्षति को कम करने के उपाय किए जाते हैं।
    • वृक्षारोपण और जल संरक्षण: पुनर्वास क्षेत्रों में वृक्षारोपण और जल संरक्षण के कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
  4. विस्थापित लोगों की भागीदारी:
    • जन सुनवाई: विस्थापित लोगों की राय और सुझाव लेने के लिए जन सुनवाई आयोजित की जाती है।
    • भागीदारी समितियाँ: विस्थापित लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए समितियाँ बनाई जाती हैं।
  5. विशेष ध्यान:
    • आदिवासी और कमजोर वर्ग: आदिवासी और अन्य कमजोर वर्गों के लिए विशेष प्रावधान किए जाते हैं ताकि उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति बेहतर हो सके।
    • महिला और बाल कल्याण: महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाते हैं।

झारखंड में विस्थापन नीति के कार्यान्वयन की चुनौतियाँ:

  1. पर्याप्त मुआवजा: कई मामलों में, मुआवजे का भुगतान समय पर नहीं होता या पर्याप्त नहीं होता।
  2. पुनर्वास स्थल की गुणवत्ता: पुनर्वास स्थल पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव होता है, जैसे पानी, बिजली, स्कूल, और अस्पताल।
  3. रोजगार के अवसर: विस्थापित लोगों को स्थायी रोजगार प्रदान करने में कठिनाइयाँ होती हैं।
  4. सामाजिक-आर्थिक समायोजन: विस्थापित लोगों को नई सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में समायोजित करने में दिक्कत होती है।
  5. कानूनी विवाद: भूमि अधिग्रहण और मुआवजे को लेकर कानूनी विवाद भी एक बड़ी समस्या है।

निष्कर्ष:

झारखंड की विस्थापन और पुनर्वास नीति का उद्देश्य विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित लोगों को न्यायसंगत मुआवजा और पुनर्वास प्रदान करना है। हालांकि, इस नीति के सफल कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं, जिन्हें सुलझाने के लिए सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है। उचित मुआवजा, रोजगार के अवसर, और बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था के साथ ही सामाजिक और आर्थिक समायोजन को बेहतर बनाकर ही इस नीति के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

 

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