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झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन का निधन, राज्य की राजनीति को लगा गहरा धक्का

झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन का निधन, राज्य की राजनीति को लगा गहरा धक्का
डेस्क
झारखंड के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता मंत्री तथा झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के वरिष्ठ नेता रामदास सोरेन का 62 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे पिछले दो सप्ताह से दिल्ली के अपोलो अस्पताल में जीवन रक्षक प्रणाली पर थे। 2 अगस्त को जमशेदपुर स्थित अपने आवास के बाथरूम में फिसलकर गिरने से उनके सिर में गंभीर चोट आई थी। प्रारंभिक इलाज के बाद उन्हें एयरलिफ्ट कर दिल्ली ले जाया गया, जहां 15 अगस्त को उन्होंने अंतिम सांस ली।
रामदास सोरेन के निधन से झारखंड की राजनीति और शिक्षा जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, राज्यपाल, कैबिनेट सहयोगियों और विभिन्न दलों के नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया है।
प्रारंभिक जीवन
रामदास सोरेन का जन्म 1 जनवरी 1963 को पूर्वी सिंहभूम जिले के घोराबंधा गांव में हुआ था। वे एक साधारण आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखते थे। पिता स्व. भदुर सोरेन किसान थे। सोरेन ने अपनी शुरुआती शिक्षा गांव से ही प्राप्त की और युवावस्था में सामाजिक कार्यों से राजनीति में कदम रखा। वे सादगीपूर्ण जीवनशैली और ग्रामीण समाज से गहरे जुड़ाव के लिए जाने जाते थे।
राजनीतिक सफर
करीब 44 वर्षों के राजनीतिक जीवन में सोरेन ने स्थानीय स्तर से लेकर राज्य स्तर तक उल्लेखनीय यात्रा की। उन्होंने राजनीति की शुरुआत घोराबंधा पंचायत के ग्राम प्रधान के रूप में की। 2009 में जेएमएम के टिकट पर घाटशिला विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने। 2014 और 2019 में भी उन्होंने लगातार जीत दर्ज कर तीन बार के विधायक बनने का गौरव हासिल किया। अपने करियर में उन्होंने झारखंड सरकार में जल संसाधन मंत्री, उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री और हाल में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता मंत्री के रूप में कार्य किया।
उन्होंने शिक्षा सुधारों, विशेषकर आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में स्कूलों के विकास और साक्षरता अभियान को गति दी।
सोरेन जेएमएम के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी रहे और संगठन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। वे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी सहयोगियों में गिने जाते थे।
जनप्रिय छवि
आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की लड़ाई हो या दलित-पिछड़े वर्गों की आवाज, रामदास सोरेन हमेशा अग्रिम पंक्ति में खड़े नजर आते थे। गांवों में रहकर लोगों की समस्याएं सुनना और समाधान के लिए प्रयास करना उनकी पहचान थी।
उनके निधन से घाटशिला समेत पूरे झारखंड में शोक की लहर है। उनका अंतिम संस्कार पैतृक गांव घोराबंधा में किया जाएगा।

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