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झारखंड में एकलव्य मॉडल विद्यालयों की संख्या बढ़ी, लेकिन नियुक्तियों की रफ्तार और आधारभूत संरचना पर सवाल बरकरार

झारखंड में एकलव्य मॉडल विद्यालयों की संख्या बढ़ी, लेकिन नियुक्तियों की रफ्तार और आधारभूत संरचना पर सवाल बरकरार

डेस्क/झारखंड न्यूज़ लाइव

राज्यसभा में सांसद प्रदीप कुमार वर्मा के एक प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने बताया कि झारखंड में जून 2025 तक 51 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) कार्यरत हैं और शैक्षणिक सत्र 2024-25 में इनमें कुल 7550 छात्र-छात्राएं नामांकित हैं। वहीं राज्य में कुल 91 EMRS स्वीकृत हैं, जिनमें 68 नई योजना के तहत और 23 संविधान के अनुच्छेद 275(1) के अंतर्गत हैं।

हालांकि इन आंकड़ों से सरकार की कोशिशें तो स्पष्ट होती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत और चुनौतियां इससे कहीं ज़्यादा जटिल हैं। राज्य में स्वीकृत 91 विद्यालयों में से अब तक केवल 51 ही कार्यरत हैं। शेष विद्यालयों के निर्माण और संचालन की स्थिति अभी भी अधूरी है।

भर्ती प्रक्रिया: लक्ष्य से काफी पीछे

जनवरी 2023 में भारत सरकार ने देशभर में EMRS के लिए 38,480 शिक्षण एवं गैर-शिक्षण पदों की मंजूरी दी, जिसमें हर स्कूल के लिए 52 पद स्वीकृत हैं। पहले चरण में 10,391 पदों के लिए परीक्षा ली गई, लेकिन अब तक केवल 9,075 पदस्थापन आदेश ही जारी हुए, और झारखंड को मात्र 147 शिक्षक ही मिले हैं।
यह संख्या राज्य में कार्यरत 51 विद्यालयों के हिसाब से प्रति स्कूल औसतन तीन शिक्षकों से भी कम बैठती है, जो कि गंभीर शैक्षणिक संकट की ओर इशारा करता है।

गुणवत्ता बनाम संख्या का संकट

सरकार द्वारा विद्यालयों की संख्या बढ़ाने की योजना सराहनीय है, लेकिन बिना पर्याप्त शिक्षक, आधारभूत ढांचा और प्रशासनिक संसाधन के ये विद्यालय कितने कारगर होंगे, इस पर सवाल उठते हैं। झारखंड के कई जिलों में विद्यालय भवन अभी निर्माणाधीन हैं, कहीं-कहीं तो केवल जमीन चिन्हित हुई है, और छात्रों को किराये की इमारतों में पढ़ाया जा रहा है।

आदिवासी बच्चों की शिक्षा पर असर

एकलव्य मॉडल विद्यालयों का उद्देश्य आदिवासी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण, आवासीय और समावेशी शिक्षा देना है। लेकिन यदि विद्यालयों में शिक्षक, पुस्तकालय, विज्ञान प्रयोगशाला, डिजिटल कक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं ही न हों, तो यह योजना केवल कागज़ी आंकड़ों तक सीमित होकर रह जाएगी।

जहां एक ओर केंद्र सरकार और राज्य प्रशासन आदिवासी समुदाय की शिक्षा को सशक्त बनाने का दावा कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भर्ती में देरी, आधारभूत संरचना की कमी और प्रशासनिक लापरवाही इस पूरे अभियान की गति को बाधित कर रही है। जरूरत इस बात की है कि सरकार केवल विद्यालयों की संख्या बढ़ाने पर नहीं, बल्कि गुणवत्ता आधारित शिक्षा और संसाधन उपलब्धता पर भी उतनी ही गंभीरता से काम करे।

रिपोर्ट: झारखंड न्यूज़ लाइव
(झारखंड के शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी खबरों के लिए हमारे साथ बने रहें)

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