झारखंड में भाजपा सभी आदिवासी सीट क्यों हारी, बाबूलाल का चेहरा भी काम न आई
अनंत
18 वीं लोकसभा के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का आदिवासी चेहरा भी काम न आया. झारखण्ड के सभी पांच आदिवासी आरक्षित सीट इंडिया एलांइस ने जीत ली है. तीन पर झामुमो और दो पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. भाजपा ने आदिवासियों पर पैठ बनाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को शामिल कराया और प्रदेश अध्यक्ष बनाया, लेकिन जिस मकसद से बाबूलाल मरांडी का चेहरा सामने लाने की कोशिश की गई थी, वह पैतरा भी काम नहीं आया. दरअसल 2014 में भाजपा विधानसभा के चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ जीत दर्ज की थी. बहुमत आने पर भाजपा इतराने लगी और इसी ख्याल से गैर आदिवासी रघुवार दास को मुख्यमंत्री बनाया गया. रघुवार दास पांच साल तक पूरे हनक के साथ राज्य में शासन किया, लेकिन जब 2019 के चुनाव हुए तो भाजपा बूरी तरह से हार गई. मंथन हुआ तो अमृत की तरह यह बात सामने आई कि राज्य में आदिवासी नेतृत्व के बिना शासन नहीं किया जा सकता है. इसी लिहाज से बाबूलाल मरांडी को लाया गया.
राज्य में 28 आदिवासी आरक्षित है सीट
झारखण्ड राज्य में 81 विधानसभा में 28 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए और 9 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. 2019 के विधानसभा में भाजपा को महज दो सीट ही मिली थी, जबकि झामुमो को 19 और कांग्रेस ने 6 सीट पर कब्जा कर लिया. विधानसभा के परिणाम आने के बाद भाजपा ने बडा निर्णय लिया और भाजपा छोड कर अलग पार्टी बनाने वाले बाबूलाल मरांडी को पूनः वापस लाया गया और आदिवासी चेहरा सामने रखा.
आदिवासी चेहरा भी काम न आया
विधानसभा की हार से भाजपा ने सबक लेते हुए झाविमो सुप्रीमो और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को भाजपा में पूनः शामिल कराया. भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया लेकिन इस लोकसभा में यह नुस्का भी काम नहीं आया. झारखंड के सभी पांच सीटों पर इंडिया एलांइस ने जीत दर्ज की है. आदिवासी सीट पर भाजपा को नकार दिया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वे सारे लोकलुभावन कदम काम नहीं आया. देश के एकलौते आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल भेजने से कहीं न कहीं आदिवासी समाज नाराज है. मध्यप्रदेश में भाजपा के कार्यकर्ता द्वार आदिवासी युवक पर पेशाब कर देने की घटना पूरे देश में चर्चा का विषय था. जिस आदिवासी युवक पर पेशाब किया गया जिसकी तश्वीर पूरी दुनिया ने देखी. आदिवासी युवक इतना विवश था कि वह विरोध भी नहीं कर पाया. मगर देश के अन्य हिस्सों में इस घटना को लेकर आदिवासी समाज उग्र था, जिसका नुकसान भाजपा को हो रही है. इस लोकसभा के चुनाव में भाजपा के सांसद और नेताओं द्वारा संविधान बदलने की बात कहना, दलित आदिवासी को नागवार गुजरा. दुमका सीट पर झामुमो से आई नेत्री सीता सोरेन को टिकट देना, सफल नहीं हुआ.