पश्चिम बंगाल के बर्धमान में 5 दलितों ने तोड़ा भेदभाव का बंधन, पहली बार मंदिर में प्रवेश कर रचा इतिहास
डेस्क/सुरेन्द्र
बर्धमान, पश्चिम बंगाल – जातिगत भेदभाव के खिलाफ एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, पूर्वी बर्धमान जिले के कटवा के गिधग्राम गांव में दलित समुदाय के लोगों ने पहली बार गिधेश्वर शिव मंदिर में प्रवेश कर पूजा-अर्चना की। इस घटना को न केवल गांव बल्कि पूरे राज्य में सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है।
किले में तब्दील हुआ गांव, भारी सुरक्षा के बीच हुआ ऐतिहासिक प्रवेश
गिधग्राम गांव में जातिगत भेदभाव लंबे समय से चला आ रहा था, जहां दलितों को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। जब 11 मार्च को दलित समुदाय के पांच सदस्यों – ममता दास, शांतनु दास, लक्खी दास, पूजा दास और षष्ठी दास – ने पहली बार मंदिर में कदम रखा, तो पूरे इलाके को पुलिस छावनी में बदल दिया गया। पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) के जवानों ने सुरक्षा की कमान संभाली, ताकि किसी भी अप्रिय घटना को टाला जा सके।
16 पड़ावों को पार कर हासिल किया हक
इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए दलितों को लंबा संघर्ष करना पड़ा। ममता दास (50 वर्ष), जो इस ऐतिहासिक कदम का हिस्सा थीं, ने कहा, “मंदिर में प्रवेश करने के लिए हमें 16 कठिन पड़ावों को पार करना पड़ा। यह सिर्फ एक मंदिर प्रवेश नहीं, बल्कि हमारे अधिकार की जीत है।”
गांव के अन्य दलित निवासियों का कहना है कि मंदिर के करीब जाने तक की अनुमति नहीं थी। “हमारी उपस्थिति को अपवित्र माना जाता था, हमें मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने तक नहीं दी जाती थीं,” – षष्ठी दास ने बताया।
प्रशासन तक पहुंची पीड़ा, मिला न्याय
गिधग्राम में करीब 2000 परिवार रहते हैं, जिनमें से 6% दलित समुदाय से आते हैं। लंबे समय से उनके साथ मंदिर प्रवेश को लेकर भेदभाव किया जाता रहा। परेशान होकर उन्होंने जिला प्रशासन, खंड विकास अधिकारी (BDO) और पुलिस को पत्र लिखा और न्याय की गुहार लगाई।
24 फरवरी को महाशिवरात्रि के मौके पर जब फिर से दलितों को मंदिर में घुसने नहीं दिया गया, तो उन्होंने प्रशासन से कड़ा हस्तक्षेप करने की मांग की।
बैठकों के बाद बदली तस्वीर
इसके बाद 28 फरवरी को उप-विभागीय अधिकारी (SDO) ने मंदिर समिति, स्थानीय विधायक (TMC के अपूर्व चौधरी), बीडीओ और गांव के प्रमुख लोगों के साथ बैठक बुलाई। इस बैठक में दलितों को मंदिर प्रवेश की अनुमति देने का प्रस्ताव पारित किया गया।
इसके बावजूद इस फैसले को लागू करने में कई अड़चनें आईं। 11 मार्च को हुई अंतिम बैठक के बाद प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाया और सुरक्षा के बीच पांच दलितों को मंदिर में प्रवेश कराया।
गांव में शांति की उम्मीद, सामाजिक बदलाव की नई शुरुआत
मंदिर में प्रवेश करने के बाद पूजा दास ने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि अब हमें बिना किसी डर के मंदिर में पूजा करने की अनुमति होगी।”
गांव के एक अन्य निवासी लक्खी दास ने कहा, “हमारे पूर्वजों को यह अधिकार नहीं मिला था, लेकिन अब हम शिक्षित हैं और समय बदल चुका है। हमने प्रशासन और पुलिस से अपील की, और उनकी मदद से हम आखिरकार अपने अधिकार पाने में सफल हुए।”
प्रशासन का बयान – ‘भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा’
इस ऐतिहासिक घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए SDO अहिंसा जैन ने कहा, “यह एक टीम प्रयास था। जातिगत भेदभाव असंवैधानिक है और इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हमने इस मुद्दे को संवेदनशीलता से संभाला और अंततः सभी पक्षों को सहमत कर लिया।”
जातिवाद के खिलाफ नई चेतना
गिधग्राम में दलितों का मंदिर प्रवेश सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक घटना है। यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक संदेश है कि संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को कोई भी छीन नहीं सकता। इस घटना से उम्मीद की जा रही है कि जातिगत भेदभाव के खिलाफ अन्य क्षेत्रों में भी बदलाव आएगा और समानता की नई रोशनी फैलेगी।