15 अगस्त को ही देश क्यों हुआ आज़ाद, जानें क्या है कारण?
अनंत/डेस्क
भारतीय संविधान सभा में 14 अगस्त को जवाहर लाल नेहरू ने भाषण देते हुए कहा था कि सालों पहले हमने नियति से साक्षात का वचन दिया था, और अब अपने उस वचन को पूरा करने का समय आ गया। बारह बजे रात को जब पूरा विश्व सो रहा होगा, तब भारत जीवन और स्वतंत्रता के स्वागत में अपनी ऑंखे खोलेगा। एक क्षण ऐसा आता है और वह क्षण इतिहास में विरल ही होता है, जब हम पुरातन से निकलकर नये परिवेश में कदम रखते हैं, तब एक युग समाप्त होता है और बहुत समय से दबे कुचले किसी राष्ट्र की आत्मा मुखर हो उठती है। आजादी का सपना लिए हर भारतीय उस समय का बेसब्री से इंतजार कर रहा था, जिस दिन करोडों भारतीय का नया सबेरा होने वाला था।
कैसे हुई घोषणा
जब अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंट बेटन ने अचानक 15 अगस्त को भारत की आजादी की घोषणा कर दी तो वे सारे पंडित और ज्योतिषाचार्य आवाक रह गए। उनका कहना था कि गुलामी कुछ और दिन सह लेंगे, लेकिन 15 अगस्त के दिन हम अंग्रेजों से मुक्त नही होंगे।
दरअसल माउंट बेटन ने भारत के सभी पक्षों के नेताओं से बात करने के बाद संवाददाता सम्मेलन बुलाया। यह संवाददाता सम्मेलन भारत के ब्रिटिश साम्राज्य के इतिहास में दूसरी और अंतिम बार कोई वायसराय संवाददाता सम्मेलन कर रहा था। रूस, अमेरिका, चीन और यूरोप के संवाददाता भारतीय समाचार पत्रों के प्रतिनिधि के वायसराय का भाषण बडे ही ध्यान से सुन रहे थे। भारत में माउंट बेटन के लिए यह अपने कार्यकाल का सबसे गौरवशाली क्षण था। दो महीनों से भी कम समय में उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया था।
उन्होंने जब अपना भाषण समाप्त किया तो हॉल, तालियों से गूंज उठा। इसके बाद उन्होंने बिना कसी संकोच के पत्रकारों से प्रश्न पूछने को कहा। जब पत्रकारों प्रश्नों की झडी लगा दी तब किसी गुमनाम भारतीय संवाददाता की आवाज हॉल को पार करके उनके पास तक पहुॅंची। वह अंतिम प्रश्न था, जिसका
अभी तक कोई उतर नहीं दिया गया था। माउंट बेटन को छः महीने पहले जिस वर्ग पहेली को हल करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी, उसमें अब यही एक खाना भरने को रह गया था। ’सर,’ उस आवाज ने पूछा था, ’’अगर सभी लोग इस बात को मानते है कि इस समय और सता सौपें जाने के बीच ज्यादा से ज्यादा तेजी से काम करना आवश्यक है तो आपने इसके लिए कोई तिथि भी अवश्य सोच रखी होगी? जी यकीनन, माउंट बेटन ने उतर दिया। और आगे आपने तिथि तय कर ली है तो वह तिथि क्या है? सवाल पूछने वाले ने कुरेदा। वायसराय सवाल के सुनते समय अपने दिमाग में बडी तेजी से हिसाब लगा रहे थे। दरअसल उन्होंने कोई तिथि तय नहीं की थी, लेकिन उन्हें इतना आवश्यक मालूम था कि यह काम जल्द ही हो जाना चाहिए। उन्होंने खचाखचा भरे हुए सभा भवन को को बडे ध्यान से देखा। कमरे में उत्सुकता भरी खामोशी छायी हुई थी, बस उपर छत पर चलते हुए बिजली के पंखों की आवाज उसे भंग कर रही थी। बाद में इस घटना को स्मरण करके उन्होंने बताया मैं यह ठान चुका था कि मैं यह सिद्ध कर दूंगा कि सबकुछ मेरा ही किया धरा है। हॉं उन्होंने कहा मैंने सता सौप देने की तिथि तय कर ली है। जिस समय वह यह बात कर रहे थे उस समय बहुत सारी तिथियां उनके दिमाग में तेजी से चक्कर काट रही थीं। सितंबर के शुरू में, सितबंर के बीच, अगस्त के बीच में, अचानक ऐसा लगा कि जुआ खेलने के मेज पर तेजी से घूमती हुई सुई एक जगह आकर रूक गयी और गोली एक खाने में जाकर इस तरह से टिक गयी कि माउंट बेटन ने उसी क्षण फैसला कर लिया। इस तिथि के साथ उनके अपने जीवन की सबसे गौरवशाली जीत की स्मृति जुडी हुई थी। बर्मा के जंगलों में लंबी लडाई इसी दिन समाप्त हुई थी और जापानी साम्राज्य के बिना किसी शर्त के आत्म समर्पण कर दिया था। नये लोकतांत्रिक एशिया के जन्म के लिए जापान के आत्म समर्पण की दूसरी वर्षगांठ से अच्छी तिथि और क्या हो सकती थी। माउंट बेटन ने की आवाज अचानक भावनाओं के आवेश से रूंध गई उन्होंने घोषणा कर दी, भारतीय हाथों में सता ंअंतिम रूप से 15 अगस्त 1947 को सौंपी जाएगी। बर्मा के जंगलों का विजेता भारत का मूक्तिदाता बनने वाला है
माउंट बेटन ने भारत की स्वतंत्रता की तिथि की घोषणा कर विस्फोट कर दिया था। हाउस ऑफ कॉमंस में प्रधानमंत्री के निवास स्थान डाउनिंग स्ट्रीट में, बकिंघम पैलेस में, किसी ने सोचा भी नहीं था कि। माउंट बेटन भारत में ब्रिटेन में घटनामय इतिहास पर इस तरह अचानक पर्दा गिरा देंगे। दिल्ली में भी वायसराय के निकटनम सहयोगियों तक को कुछ पता नहीं था कि माउंट बेटन क्या करने वाले हैं। उन भारतीय नेताओं को भी, जिनके साथ उन्होंने इतने घंटे बिताए थे, इस बात का कोई संकेत नहीं मिला था कि वह इतनी शीध्रता से काम लेंगे। लेकिन माउंट बेटन ने एक अक्षम्य अपराध यह किया कि उन्होंने भारत के ज्योतिषियों से पूछे बिना ही तिथि चुनकर उसकी घोषणा कर दी थी। 1947 में 15 अगस्त को शुक्रवार पडने वाला था और शुक्रवार का दिन अशुभ होता है।
जैसे ही रेडियो पर माउंट बेटन ने की तय की हुई तिथि की घोषणा की, सारे हिन्दुस्तान में ज्योतिषी अपने पंचाग खोलकर बैठ गए। पवित्र नगरी काशी में ज्योतिषी ने और दक्षिण के ज्योतिषियों ने तुरन्त घोषणा कर दी कि 15 अगस्त का दिन इतना अशुभ है कि भारत के लिए अच्छा यही होगा कि हमेशा के लिए नरक की यातनाएं भोगने के बजाय वह एक दिन के लिए अंग्रजों का शासन और सहन कर लें।
कलकता के स्वामी मदनानंद ने इस तिथि की घोषणा सुनते ही अपना नवांश निकाला और ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति देखते ही वह चीख पडें। क्या अनर्थ किया है इन लोगों ने? कैसे अनर्थ किया है इन लोगों ने। उन्होंने तुरंत माउंट बेटन को एक पत्र लिखा। ईश्वर के लिए भारत को 15 अगस्त को स्वतंत्रता न दीजिए, क्योकि यदि इस दिन स्वतंत्रता मिली तो इसके बाद बाढ तथा अकाल का प्रकोप और नरसंहार होगा और इसका केवल कारण यह होगा कि स्वतंत्र भारत का जन्म एक अत्यंत अशुभ दिन होन निर्धारित किया गया है, लेकिन जब एक बार माउंट बेटन ने घोषणा कर दी उसे ही अमल किया गया.