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संथाल हूल भारत की प्रथम जनक्रांति

संथाल हूल भारत की प्रथम जनक्रांति

झारखंड/ सुरेन्द्र मैत्रेय

संथाल हूल 1855-56 भारत के औपनिवेशिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण जनजातीय विद्रोह था। यह विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ संथाल जनजाति द्वारा किया गया था, जिसका मुख्य कारण ब्रिटिश प्रशासन और स्थानीय जमींदारों द्वारा उनके शोषण और उत्पीड़न था।

संथाल विद्रोह का कारण
संथाल विद्रोह, जिसे क्षेत्रीय तौर पर “संथाल-हूल” के नाम से बेहतर जाना जाता है, झारखंड के इतिहास में सबसे व्यापक एवं प्रभावशाली विद्रोह था। यह विद्रोह झारखंड के पूर्वी क्षेत्र, जिसे संथाल परगना के नाम से जानते हैं, में 1855-56 में घटित हुआ था। संथाल जनजाति का आक्रोश ब्रिटिश काल में साहूकारों और औपनिवेशिक प्रशासकों द्वारा उनके शोषण के कारण था। बाहरी लोग (दीकू) और व्यापारी संथालों द्वारा लिए गए ऋणों पर अत्यधिक ब्याज वसूलते थे, जिससे संथालों का जीवन दूभर हो गया था।

संथाल कौन हैं?

“संथाल, गोंड और भील के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा अनुसूचित जनजाति समुदाय है । यह झारखण्ड की सबसे बड़ी जनजति है । 2022 में देश की 15वीं राष्ट्रपति बनी द्रौपदी मुर्मू इसी जनजाति से हैं । वह भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं । 

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (SCSTRTI) के अनुसार, संथाल शब्द दो शब्दों से बना है: ‘संथा’ और ‘अला’ । ‘संथा’ का अर्थ है शांत और शांतिपूर्ण; जबकि ‘अला’ का अर्थ है मनुष्य ।

संथाल मुख्य रूप से कृषक होते हैं । संथाल आबादी ज्यादातर ओडिशा, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में वितरित है । “संथाली” संथालों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है और इसकी अपनी लिपि है जिसे ओलचिकी कहा जाता है । संथाली भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में भी शामिल है । संथालों की पारंपरिक चित्रकला को जादो पाटिया कहते हैं । संथालों की प्रमुख ख्याति 1855-56 के संथाल विद्रोह के कारण भी है । कार्ल मार्क्स ने इस विद्रोह को भारत की प्रथम जनक्रांति की संज्ञा दी थी । इसकी चर्चा उन्होंने अपनी बहुचर्चित पुस्तक “द कैपिटल” में भी की है ।”

संथालों का शोषण कई तरीकों से किया गया। पढ़े-लिखे न होने के कारण संथालों को धोखाधड़ी का सामना करना पड़ता था, जिसमें उनसे तय दर से अधिक ब्याज वसूलना और उनकी जमीनें हड़प लेना शामिल था। प्रशासन या पुलिस से कोई मदद नहीं मिलती थी। इसी बीच ब्रिटिश सरकार ने भागलपुर-वाराणसी रेल परियोजना के तहत संथालों को बलात मजदूरी के लिए भर्ती किया, जो विद्रोह का तात्कालिक कारण बना।

विद्रोह की प्रमुख घटनाएं
30 जून, 1855 को भगनीडीह में 400 गाँवों के लगभग 6000 आदिवासी इकट्ठा हुए और विद्रोह की घोषणा की। इस विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू, कान्हू, चांद, भैरव, फूलो और झानो ने किया। सिद्धू और कान्हू ने घोषणा की कि देवता ने उन्हें निर्देश दिया है कि “आजादी के लिए हथियार उठा लो”। विद्रोहियों ने ब्रिटिश दफ्तरों, थानों, डाकघरों और अन्य संस्थानों पर हमले शुरू कर दिए। भागलपुर और राजमहल के बीच सभी सरकारी सेवाएँ ठप्प कर दी गई।

विद्रोह का दमन एवं इसकी महत्ता
सरकार ने संथाल विद्रोह को कुचलने के लिए मार्शल लॉ लागू किया और मेजर बरो के नेतृत्व में सेना की 10 टुकड़ियाँ भेजी गई। विद्रोही नेताओं को पकड़ने के लिए इनाम घोषित किया गया। सिद्धू को 5 दिसंबर को फांसी दी गई, चांद और भैरव पुलिस की गोली से मारे गए, और कान्हू को 23 फरवरी, 1856 को फांसी दी गई। इस प्रकार इस विद्रोह का दमन कर दिया गया।

हालांकि विद्रोह का दमन हो गया, लेकिन इसका झारखंड के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इस विद्रोह ने आदिवासियों को जागरूक किया और आगे के आंदोलनों के मार्ग प्रशस्त किए। सरकार ने संथाल लोगों के लिए पृथक संथाल परगना बनाकर शांति स्थापित की, और दुमका, देवघर, गोड्डा और राजमहल उप-जिले बनाए गए।

कार्ल मार्क्स ने संथाल हूल को भारत की प्रथम जनक्रांति कहा और इसकी चर्चा अपनी पुस्तक ‘द कैपिटल’ में भी की। संथाल विद्रोह ने आदिवासी समाज में एक नई जागरूकता और संघर्ष की भावना पैदा की, जो आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण साबित हुई।

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