सरेंडर की राह पर था कुँवर मांझी, लेकिन किस्मत ने नहीं दिया साथ, मां और पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल
डेस्क
बोकारो के गोमिया थाना अंतर्गत बिरहोर डेरा जंगल में 16 जुलाई की सुबह हुई पुलिस-नक्सली मुठभेड़ ने नक्सली संगठन एमसीसी के एक बड़े चेहरे सब जोनल कमांडर कुँवर मांझी की जिंदगी पर हमेशा के लिए विराम लगा दिया। वर्षों तक लुगू, जिलगा और झुमरा के बीहड़ों में पुलिस के लिए सिरदर्द बना यह नाम, अब केवल इतिहास बन गया है।
सूत्रों की मानें तो कुँवर मांझी अपनी बीमार पत्नी सुसंती सोरेन को देखने 15 जुलाई की रात घर आया था। पत्नी बहुत पहले से ही सरेंडर करने का दबाव बना रही थी लेकिन जब 15 जुलाई की रात को पहुंचा तो पुनः वही बात दुहराई। पत्नी ने कहा, “कब तक भागते रहोगे, लौट आओ, हम सब साथ हैं।” कुँवर ने भी हामी भरी और वादा किया कि एक-दो दिन में सरेंडर करेगा। मगर किस्मत को कुछ और मंजूर था।
दूसरे दिन सुबह, 16 जुलाई को लुगू पहाड़ के पास बिरहोर डेरा जंगल में कोबरा 209 बटालियन और जिला पुलिस के साथ मुठभेड़ में उसकी मौत हो गई। उसके शव की पहचान के लिए पत्नी, मां, भाई सहित परिजन ने किया।
मजदूर से माओवादी कमांडर तक
कुँवर मांझी कभी गोमिया में मजदूरी करता था। 2005-06 के आस-पास वह माओवादी संगठन से जुड़ा। संतोष महतो, अजय महतो और फिर दुर्योधन महतो उर्फ मिथिलेश सिंह के दस्तों में सक्रिय रहा। मिथिलेश के आत्मसमर्पण के बाद कुँवर को सब जोनल कमांडर की जिम्मेदारी मिली। लुगू-जिलगा-झुमरा क्षेत्र में उसकी मजबूत पकड़ थी।
21 अप्रैल को बचा था, 85 दिन बाद मारा गया
कुँवर मांझी 21 अप्रैल को हुई मुठभेड़ में बाल-बाल बचा था, लेकिन इस बार पुलिस का जाल इतना सटीक था कि वह भाग नहीं सका।
अधूरा पीएम आवास, अधूरा वादा
सरकार ने उसकी पत्नी के नाम से पीएम आवास स्वीकृत किया था, जो आज भी अधूरा है। उसकी तरह ही अधूरा रह गया उसका वादा — सरेंडर का वादा, लौट आने का वादा।
बिरहोर डेरा में उमड़ा गांव, सैकड़ों ने दी विदाई
उसके शव के गांव पहुंचते ही सैकड़ों लोग अंतिम दर्शन के लिए जुटे। गांव की गलियों में वह नक्सली नहीं, एक बेटा, एक पति और एक अधूरे वादे की पीड़ा बनकर लौटा।
बिरहोर डेरा मुठभेड़ में मारे गए दूसरे व्यक्ति की पहचान बलदेव मांझी उर्फ बलदेव किस्कू के रूप में
बिरहोर डेरा मुठभेड़ में मारे गए दूसरे व्यक्ति की पहचान पेंक-नारायणपुर थाना क्षेत्र के कडरूखुट्टा-लछुवालता गांव निवासी बलदेव मांझी उर्फ बलदेव किस्कू के रूप में हुई है।
पुलिस ने मृतक की पहचान के लिए उसके परिजनों को बुलाया था। परिजनों ने बताया कि बलदेव 14 जुलाई को हजारीबाग कोर्ट से हाजिरी लगाकर लौटा था और 15 जुलाई को कहकर गया था कि “एक-दो दिन में वापस आएंगे।” लेकिन 17 जुलाई को जब पुलिस ने फोटो दिखाया, तो उन्होंने पहचान कर ली। पुलिस ने बताया कि औपचारिक शिनाख्त की प्रक्रिया पूरी की जा रही है, पुष्टि होते ही विस्तृत जानकारी दी जाएगी।