स्वतंत्रता संग्राम और युद्धकालीन राष्ट्रभक्ति की दुर्लभ यादें: गोमिया के नागरिकों की जुबानी
गोमिया
आज़ादी के बाद भारत द्वारा लड़े गए 1965 और 1971 के युद्धों में जहां सैनिकों ने सीमा पर पराक्रम दिखाया, वहीं देश के भीतर भी आम नागरिकों ने अपने-अपने स्तर से राष्ट्र सेवा में अभूतपूर्व योगदान दिया। गोमिया प्रखंड अंतर्गत एकीकृत हजारी पंचायत के पूर्व सरपंच बालगोविंद प्रजापति और
सीपीएम नेता रामचंद्र ठाकुर ने अपने बचपन के संस्मरण साझा करते हुए बताया कि 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वे मात्र 15 वर्ष के थे। बोकारो थर्मल के डीवीसी हाई स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, और देशभक्ति से ओतप्रोत होकर उन्होंने ट्रेन में बूट पॉलिश करने का निर्णय लिया, ताकि आर्थिक रूप से सेना की मदद कर सकें। यह निर्णय सामाजिक रूप से उस समय काफी कठिन था इसके बावजूद जोखिम उठाया। बाद में उन्हें काफी भला बुरा कहा गया, लेकिन उनके मन में देशभक्ति के साथ समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने का संदेश भी देना था।
उन्होंने गोमिया से बरकाकाना तक पैसेंजर ट्रेन में बूट पॉलिश कर 30 रुपये जुटाए और यह राशि अपने स्कूल हेडमास्टर के माध्यम से ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कोष’ में जमा करवाई। उस समय के हेडमास्टर ने उनके इस समर्पण को सराहा और स्कूल की सभी कक्षाओं में उन्हें ले जाकर उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया।

1971 युद्ध की स्मृतियाँ भी गहरी हैं। गोमिया के प्रसिद्ध व्यवसायी विजय जैन ने बताया कि 1971 की भारत-पाक लड़ाई के बाद जब 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाया गया, तो उन्हें ले जाने वाली ट्रेन गोमिया रेलवे स्टेशन पर रुकी थी। उसमें भारत के विजयी सैनिक भी थे। जैसे ही यह खबर फैली, सैकड़ों लोग स्टेशन पहुंचे और वीर सैनिकों का फूल-मालाओं, बिस्कुट और फलों से स्वागत किया।

वहीं अजीत कुमार सहाय, जो 1971 में 19 वर्ष के थे और केबी कॉलेज, बेरमो में बीए पार्ट-1 के छात्र थे, ने बताया कि युद्ध के दौरान गोमिया और आसपास के क्षेत्रों में सुरक्षा कारणों से रात 8 से 10 बजे तक ब्लैकआउट रखा जाता था, विशेषकर यहां स्थित बारूद फैक्ट्री के कारण इस क्षेत्र को संवेदनशील माना जाता है। उस बिजली की स्थिति भी दयनीय थी। ब्लैक आउट होने पर घोर अंधेरा छा जाता था। उन्होंने बताया कि गोमिया के नागरिकों ने भी अपने-अपने स्तर पर देश सेवा में अमूल्य योगदान दिया है।